क्या भारतीय रेल के बिज़नेस करने के तरीके में कोई कमी है जिसे ठीक करने की जरूरत है ? आखिर क्यों यात्रियों को सही और अच्छी सुविधाएं लाख प्रयासों के बाद भी नहीं मिल पा रही हैं ? या फिर अब किये जा रहे प्रयास भले ही सही दिशा में हों पर हैं अति न्यूनतम और अति विलम्ब ? पिछले वर्ष ऐसे ही कई प्रश्न भारतीय रेल के भविष्य को लेकर उठाये गए थे |
पिछले वर्ष की कैग (नियंत्रक और महालेखा परीक्षक) रिपोर्ट में हर वर्ष की ही तरह यात्रियों को परोसे जा रहे खाने पर गंभीर सवाल खड़े किये गए | मीडिया रिपोर्ट में भी कहीं यात्रियों को खाने में पड़ी हुई छिपकली की शिकायत का वर्णन है तो कहीं यात्रियों से ज्यादा पैसे वसूलने की शिकायत | इसके अलावा कैग ने वातानुकूलित डिब्बों में यात्रियों को दिए जा रहे कम्बलों को भी घेरे में लेते हुए उन्हें गंदे और न इस्तेमाल किये जाने लायक करार दिया | इतना ही नहीं सुपरफास्ट ट्रेन के नाम पर रेलवे द्वारा लिए जा रहे सरचार्ज पर भी प्रश्न चिन्ह कैग द्वारा लगाया गया; क्यूंकि ज्यादातर सुपरफास्ट ट्रेनें विलम्ब से ही चलती हैं |
इन सभी सवालों के बीच सबसे बड़ी चिंताजनक बात भारतीय रेल के लिए ये रही कि कम दूरी की ट्रेनों में अब पहले जैसी यात्रियों की संख्या भी नहीं रही है और यात्री ट्रेन की बजाय बस से यात्रा करना पसंद कर रहे हैं, इसके उलट लम्बी दूरी में भी भारतीय रेल में उच्च श्रेणी डिब्बों में यात्रियों की कमी आयी है क्यूंकि लोग विमान सेवाओं को ज्यादा महत्व दे रहे हैं | जहाँ एक तरफ विमान सेवा लेने वालों की संख्या में बढ़ोतरी दोहरे अंकों में हुई है, वहीँ रेलवे में यात्रियों की संख्या में गिरावट हुई है | अब तो हालात यहाँ तक पहुँच गए हैं कि 500 किमी तक दूरी तय करने वाली इंटरसिटी ट्रेनों में भी उच्च श्रेणी में यात्रा करने वाले यात्री लक्ज़री बसों में जाना ज्यादा पसंद करते हैं |
निचले स्तर पर सही सेवाएं न मिलने का एक मात्र कारण मध्य स्तर के शासन और प्रबंधन की घटिया और न ध्यान देने वाली कार्यशैली है | उदहारण के तौर पर अगर यात्री अपने खाने में छिपकली पाए जाने की शिकायत करता है तो उसके प्रति रेलवे का रवईया त्वरित होने की बजाय उदासीन ही रहता है | वहीँ ट्वीट करने पर उसी यात्री के लिए अगले स्टेशन पर कई वरिष्ठ अधिकारी त्वरित कार्यवाही का दिलासा देने हेतु मिलते हैं | इस तरह का शासन प्रबंधन किसी भी उच्च श्रेणी में यात्रा कर रहे यात्री को रास नहीं आएगा |
उधर यात्री सेवाओं से हटकर माल ढुलाई की तरफ आएं तो वहां भी स्थिति चिंन्ताजनक ही है | पिछले वर्ष पहली बार रेलवे माल ढुलाई में ना सिर्फ अपना लक्ष्य पाने में असफल रहा बल्कि माल ढुलाई में कमी भी अंकित की | रेलवे ज्यादातर भारी मात्रा में होने वाली माल ढुलाई जैसे कोयला इत्यादि पर निर्भर रहता है जो औद्योगिक क्षेत्र में आई मंदी के समय कम हो जाती है | ऐसे समय जब ग्लोबल वार्मिंग के समय कोयले पर निर्भरता कम करने के लिए सरकार जोर शोर से लग हुई है, तो रेलवे को भी अपनी व्यापार रणनीति में बदलाव लाने की जरूरत है |
पूर्व रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने भी इस बात पर जोर दिया था कि रेलवे अब कोयले के बजाय दूसरे सामान जैसे कार, बाइक इत्यादि ट्रांसपोर्ट करने की तरफ देख रहा है | इसके अलावा रेलवे जल्द ही इसके लिए समर्पित फ्रेट कॉरिडोर भी बना रहा है |
मध्य स्तर अधिकारीयों की कार्यशैली कैसे ठीक हो सकेगी, रेलवे ने अभी तक इसपर कुछ भी नहीं कहा है, हालाँकि उच्च स्तर पर लगातार सकारात्मक निर्णय लीये जा रहे हैं | उदहारण के तौर पर इतने बड़े स्तर पर प्रयोग में लाये जा रहे कंबलों को साफ़ रख पाना बहुत मुश्किल कार्य है परन्तु अगर डिब्बों के अंदर तापमान को ऐसे रखा जाए जिसमे इनकी जरूरत ही न पड़े तो ये आसान हो जाता है | इसी से जुड़ा एक प्रयोग रेलवे ने शुरू किया है और सफल होने पर इसे क्रियान्वित भी किया जाएगा | इसी तरह से ऐसे कंबलों के प्रयोग पर भी विचार किया जा रहा है जिन्हे साफ़ करना आसान हो |
इस वर्ष भारतीय रेल को कुछ ऐसे ही परिवर्तनात्मक विचारों से उत्पन्न तथा क्रियान्वित निर्णयों की आवश्यकता है जो इसके प्रति यात्रियों की सोच को बदल सके | अभी तक रेलवे को ऐसे जन-मानस के साधन के रूप में देखा गया है जो एक स्थान से दूसरे स्थान बिना ज्यादा अर्थ व्यय किये बिना जा सकें | ऐसे वो जन-मानस ना तो रेलवे से ज्यादा उम्मीद रखते हैं और ना ही उन्हें समय से ना पहुंचने पर कुछ नुकसान होता है | परन्तु बदलते समय में लोगों की रेलवे के प्रति अपेक्षा बदलने के लिए बड़े बदलवों की आवश्यकता है जो इस वर्ष उम्मीद हैं कि हो पाएं |